भूमिहार ब्राह्मण के गोत्र - कुलनाम | Bhumihar Gotra & Surnames भूमिहार जाती के गोत्र और किस्म की सम्पूर्ण जानकारी- हिन्दू में गोत्र वैवाहिक गठजोड़ तय करने का आधार रहा है। सजाति प्रजनन से बचने के लिए, एक ही गोत्र के व्यक्तियों को शादी करने से मनाही है। गोत्र उन लोगों के समूह को कहते हैं जिनका वंश एक मूल पुरुष पूर्वज (ऋषि-मुनि) से अटूट क्रम में जुड़ा है।
भूमिहार ब्राह्मण के गोत्र और उपजाति (Bhumihar Gotra and Types)
भूमिहार या बाभन (अयाचक ब्राह्मण) एक ऐसी सवर्ण जाति है जो अपने शौर्य, पराक्रम एवं बुद्धिमत्ता के लिये जानी जाती है।
भूमिहार ब्राह्मणों में कुछ महत्वपूर्ण गोत्र तथा किस्म हैं:
- गौतम - पिपरामिश्र, गोतामीया, दात्त्यायण, वात्सयायन, करमैसुरौरे, बद्रामिया.
- शांडिल्य - दिघ्वैत, कुसुमतिवारी, कोरांच, नैन्जोरा, रामियापाण्डेय, चिकसौरिया, करमाहे, ब्रहम्पुरिया, सिहोगिया आदि.
- वसिष्ठ - कस्तुआर, दरवलिया और मरजाणीमिश्र.
- कश्यप - जैथरिया, किनवर, नोंहुलिया, बरुआर, दानस्वर कुधुनिया, ततीहा, कोल्हा, करेमुआ, भूपाली, जिझौतिया, त्रिफला पांडेय, सहस्नामे, दिक्षित, बबनडीहा, मौआर और धौलोनी आदि.
- भार्गव - भ्रीगू, कोठा भारद्वाज, आस्वारीय, भार्गव, कश्यप.
- भारद्वाज - दुमटिकर, जथारवर, हेरापुरीपांडेय, बेलौंची, आम्बरीया, चकवार, सोन्पखरिया, मचैयापांडेय, मनाछीया, सोनेवार, सीईनी.
- कत्त्यायण - वद्रकामिश्र, लम्गोदीवातेवारी, श्रीकंतपुरपांडेय.
- कौशिक - कुसौन्झीया, नेकतीवार, पांडेयटेकर.
- वत्स – दोनवार , सोन्भादरीया, गानामिश्र, बगोउचीया, जलेवर, समसेरिया, हथौरीया, गंगतिकई.
- सवर्ण - पन्चोभे, सोबरणीय, बेमुआर, टीकरापांडेय.
- गर्ग - शुक्ला, बसमैत, नाग्वाशुक्ला और गर्ग.
- सांकृत - सकरवार, म्लाओंपांडेय, फतुहावाद्यमिश्र
- पराशर - एकसरिया, सहादौलिया, सुरगामे और हस्तागामे.
- कपिल - कपिल.
- उपमन्यु - उपमन्यु.
- आगस्त - आगस्त.
- कौन्डिल्य - अथर्व, बिजुलपुरिया.
- विष्णुवृद्धि - कुठावैत
भूमिहार ब्राह्मणों को कहाँ किस नाम से जाना जाता हैं:
- भूमिहार - बिहार, झारखंड एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश
- त्यागी - पश्चिम उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा
- गालव - मध्य प्रदेश एवं आगरा
- चितपावन और देशस्थ - महाराष्ट्र
- नियोगी - आंध्र प्रदेश
- मोहियाल - हिमाचल प्रदेश, पंजाब तथा जम्मु में
- पुष्कर्ण - राजस्थान
- सारस्वत - हरियाणा
- बारिन्द्रो - पश्चिम बंगाल
- हलवा - उड़ीसा
- कौल - कश्मीर
- अनाविल - गुजरात
- अय्यर, आयंगार - तमिलनाडु
- केरला - नम्बूदरीपाद
- कर्नाटक - हब्यक
भूमिहार ब्राह्मणों का संक्षिप्त इतिहास
पहले भूमिहार समाज को केवल ब्राह्मण के नाम से ही जाना जाता था लेकिन जब ब्राह्मणों के छोटे छोटे दल बनने लगे तब भगवान् परशुराम में अपनी संतति ढूँढने वाले त्रिकर्मी आयचक ब्राह्मण दल (जैसे- मगध के बाभन, मिथिला के ब्राह्मण, उत्तर प्रदेश के जमींदार ब्राह्मण) को लेकर सन 1885 ई० में एक सभा बनारस में की गई। सभा के विचार विमर्श के उपरान्त इस त्रिकर्मी आयचक ब्राह्मण समाज को एक नये नाम 'भूमिहार ब्राह्मण' से जाना जाने लगा।
चूंकि भूमिहारों की उत्पत्ति ब्राह्मणों से है इसलिए 'भूमिहार ब्राह्मण' समाज में टाइटल / उपनाम उस अनुसार है जैसे :- पाण्डेय, तिवारी/त्रिपाठी, शर्मा, मिश्र, शुक्ल, उपाध्यय, ओझा, दुबे / द्विवेदी आदि। इसके अलावा रियासत और ज़मींदारी के कारण भूमिहार ब्राह्मण के एक बड़े भाग का उपनाम/टाइटल राय, साही, सिंह, भोक्ता, त्यागी, चौधरी, ठाकुर में हो गया।
बनारस राज्य भूमिहार ब्राह्म्णों के अधिपत्य में 1725 से 1947 तक रहा, इसके अलावा कुछ अन्य बड़े राज्य बेतिया, लालगोला, हथुवा, टिकारी, तमकुही इत्यादि भी भूमिहार ब्राह्मणों के अधिपत्य में रहे हैं।
भूमिहार ब्राह्मण कुछ जगह प्राचीन समय से पुरोहिताई करते चले आ रहे है जैसे कि प्रयाग की त्रिवेणी के सभी पंडे भूमिहार ही हैं। गया के विष्णुपद मंदिर और देव सूर्यमंदिर के पुजारी भूमिहार ब्राह्मण ही हैं।
भूमिहार ब्राह्मणों की उत्पत्ति: इतिहास और पौराणिक संदर्भ
भूमिहार ब्राह्मणों की उत्पत्ति को लेकर कई ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यताएँ हैं। इन्हें 'महान्यायिक ब्राह्मण', 'क्षत्रिय ब्राह्मण' और 'भूमिहारी ब्राह्मण' भी कहा जाता है। इनकी उत्पत्ति मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बंगाल और ओडिशा में बताई जाती है।
1. पौराणिक मान्यता:
कुछ मान्यताओं के अनुसार, भूमिहार ब्राह्मणों का उद्भव उन ब्राह्मणों से हुआ जो युद्ध में क्षत्रियों के समाप्त होने के बाद शासन और रक्षा कार्यों में लगे। विशेष रूप से परशुराम जी से जुड़ी कथाएँ इनसे संबंधित बताई जाती हैं।
- जब भगवान परशुराम ने अत्याचारी क्षत्रियों का संहार किया, तब समाज में एक शासक वर्ग की आवश्यकता थी।
- तब ब्राह्मणों के एक समूह ने शासन की जिम्मेदारी संभाली और योद्धा के रूप में कार्य किया।
- बाद में, वे कृषि भूमि के स्वामी बने और इन्हें भूमिहार ब्राह्मण कहा जाने लगा।
2. ऐतिहासिक दृष्टिकोण:
- गुप्त वंश और पाल वंश के समय भूमिहार ब्राह्मणों का उल्लेख मिलता है।
- 11वीं-12वीं शताब्दी में भूमिहारों ने बिहार और उत्तर प्रदेश में कई स्वतंत्र रियासतों की स्थापना की।
- मुगल काल में भी भूमिहार ब्राह्मणों का प्रभावशाली योगदान रहा।
- ब्रिटिश काल में ये प्रमुख जमींदार और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में प्रसिद्ध हुए।
3. सामाजिक और धार्मिक स्थिति:
- भूमिहार ब्राह्मण पूर्ण रूप से वैदिक रीति-रिवाजों का पालन करते हैं।
- ये प्रमुख रूप से गायत्री मंत्र, यज्ञोपवीत और संध्या वंदन जैसी ब्राह्मणीय परंपराओं का पालन करते हैं।
- उत्तर भारत में भूमिहार ब्राह्मणों की कई प्रसिद्ध शाखाएँ हैं, जैसे गौतम, कश्यप, भारद्वाज, वत्स, शांडिल्य आदि।
भूमिहार और ब्राह्मण में अंतर
भूमिहार और ब्राह्मण दोनों ही हिंदू समाज के प्रतिष्ठित वर्ग हैं, लेकिन इनके बीच कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं।
1. उत्पत्ति और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
ब्राह्मण
- ब्राह्मण वर्ण व्यवस्था में श्रेष्ठतम (श्रेष्ठि) माने जाते हैं।
- इनका मूल कार्य पूजा-पाठ, यज्ञ, शिक्षा और धार्मिक कार्यों को निभाना था।
- ये वेदों के ज्ञाता होते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों का संचालन करते हैं।
- ब्राह्मणों के मुख्य गोत्र जैसे गौतम, भारद्वाज, वसिष्ठ, कश्यप आदि पाए जाते हैं।
भूमिहार ब्राह्मण
- भूमिहार शब्द "भूमि" (धरती) और "हार" (स्वामी) से बना है, जिसका अर्थ है "भूमि के स्वामी ब्राह्मण"।
- ये वे ब्राह्मण हैं जिन्होंने शासन और कृषि कार्यों में भाग लिया और भूमि स्वामी बने।
- इन्हें 'क्षत्रिय ब्राह्मण' भी कहा जाता है क्योंकि इन्होंने युद्ध में भाग लिया और कई राज्यों पर शासन किया।
- भूमिहार ब्राह्मण भी यज्ञोपवीत और संध्या वंदन करते हैं, लेकिन इनका मुख्य कार्य राजनीति, युद्ध और कृषि से जुड़ा रहा है।
धार्मिक परंपराएँ
- दोनों वर्ग जनेऊ पहनते हैं और वैदिक रीति-रिवाजों का पालन करते हैं।
- दोनों में गौत्र प्रणाली पाई जाती है, लेकिन भूमिहार ब्राह्मण अपने योद्धा इतिहास के कारण विशिष्ट माने जाते हैं।
- ब्राह्मण मुख्य रूप से मंदिरों और आश्रमों में होते हैं, जबकि भूमिहार ब्राह्मण कृषि भूमि और राजनीतिक क्षेत्र में अधिक सक्रिय रहे हैं।
निष्कर्ष
भूमिहार ब्राह्मण ब्राह्मणों का ही एक विशिष्ट उपवर्ग हैं, जिन्होंने युद्ध, शासन और कृषि कार्यों को अपनाया। जबकि ब्राह्मणों का पारंपरिक कार्य धार्मिक अनुष्ठान और शिक्षा देना रहा है। समाज में दोनों की प्रतिष्ठा उच्च रही है, लेकिन भूमिहार ब्राह्मणों को योद्धा और जमींदार ब्राह्मणों के रूप में अधिक पहचाना जाता है।